Uniform Civil Code explained in Hindi: जानिये क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड और आर्टिकल 44? क्यों है यह जरूरी और क्या मिलेगा फायदा, क्यों हो रहा है विरोध? | All about Uniform Civil Code in Hindi, it's advantage, disadvantage and importance in Hindi
Uniform Civil Code in Hindi: समान नागरिक संहिता कानून (UCC) एक ऐसा मुद्दा है जिसका मांग समय समय पर होता आ रहा है. यह मुद्दा हर चुनाव में उभरकर आता है. कई बात मुद्दा राजनीती का रूप लेती है तो कई बार सामाजिक समस्या का रूप. समाज का एक हिस्सा इसके पक्ष में है तो दूसरा हिस्सा इसका विरोध करता है. कई लोगो का मानना है की भारत में एक समान नागरिक संहिता कानून की कमी के कारण भारतीय समाज के समग्र विकास की संभावनाएं बाधित होती रही हैं.
कई बार समान नागरिक संहिता कानून के अभाव के चलते अदालतों में भी फैसला लेने में समस्या उत्पन्न हो जाती है. समान नागरिक संहिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट से लेकर दिल्ली हाईकोर्ट तक सरकार से सवाल कर चुकी है. वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए कोई कोशिश नहीं की गई. वहीं, पिछले साल जुलाई में दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से कहा था कि समान नागरिक संहिता जरूरी है. हाल ही में उत्तराखंड में यूनिफार्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) क़ानून लागू करने की बात कही गयी है. अगर ऐसा होता है तो गोवा के बाद उत्तराखंड ऐसा करने वाला दूसरा राज्य बन जाएगा. गोवा इस समय देश का एक मात्र राज्य है, जहां समान नागरिक संहिता लागू है. यहां वर्ष 1961 में गोवा की आजादी से ही कॉमन सिविल कोड लागू है. गोवा में पुर्तगाल सिविल कोड 1867 लागू है.
अब तक तो आपने अलग-अलग राज्यों के अलावा केंद्र सरकार की तरफ से भी समय समय पर समान नागरिक संहिता कानून (यूनिफॉर्म सिविल कोड) लागू करने की बात सुनी होगी, लेकिन इस पर आगे कोई अमल नहीं हो पाया है. सवाल यह उठता है कि यूसीसी की अवधारणा कैसे अस्तित्व में आई? क्या आप जानते हैं कि आखिर क्या होता है यूनिफार्म सिविल कोड (UCC) और क्यों है जरूरी? स्वतंत्रता के बाद के दौर में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लाने के लिए क्या कदम उठाए गए थे? इस मुद्दे पर कानूनों का न्यायशास्त्र क्या है? वर्तमान सरकार इसे लागू करने में क्यों विफल रही है, और इसे लेकर आगे बढ़ने का संभावित तरीका क्या है? आखिर यूनिफॉर्म सिविल कोड से क्या मिलेगा फायदा? क्यों कई जगह हो रहा है इसका विरोध?
यूनिफॉर्म सिविल कोड में यूनिफॉर्म का मतलब | What is the meaning of Uniform in Uniform Civil Code in Hindi
आखिर समान नागरिक संहिता कानून/ यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) क्या होता है? | What is Uniform Civil Code in Hindi?
- यूनिफॉर्म सिविल कोड को हिंदी भाषा में समान नागरिक संहिता कहा जाता है. इसका मतलब यह होता है कि देश के हर व्यक्ति के लिए एक जैसा कानून लागू हो. इसके तहत एक व्यक्ति किसी भी धर्म-मज़हब से संबंध रखता हो, सभी के लिए एक ही कानून होगा. इसको धर्मनिर्पेक्ष कानून भी कहा जा सकता है.
- समान नागरिक संहिता यानी सभी धर्मों के लिए एक ही कानून. यूनिफॉर्म सिविल कोड या समान नागरिक संहिता बिना किसी धर्म के दायरे में बंटकर हर समाज के लिए एक समान कानूनी अधिकार और कर्तव्य को लागू किए जाने का प्रावधान है. इसका अर्थ है एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है.
- इसके तहत राज्य में निवास करने वाले लोगों के लिए एक समान कानून का प्रावधान किया जाता है. धर्म के आधार पर किसी भी समुदाय को कोई विशेष लाभ नहीं मिल सकता है.
- अभी होता ये है कि हर धर्म का अपना अलग कानून है और वो उसी हिसाब से चलता है. हिंदुओं के लिए अपना अलग कानून है, जिसमें शादी, तलाक और संपत्तियों से जुड़ी बातें हैं. मुस्लिमों का अलग पर्सनल लॉ है और ईसाइयों को अपना पर्सनल लॉ.
- समान नागरिक संहिता को अगर लागू किया जाता है तो सभी धर्मों के लिए फिर एक ही कानून हो जाएगा. राज्य में निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति पर एक कानून लागू होगा. कानून का किसी धर्म विशेष से कोई ताल्लुक नहीं रह जाएगा. मतलब जो कानून हिंदुओं के लिए होगा, वही कानून मुस्लिमों और ईसाइयों पर भी लागू होगा.
- अभी हिंदू बिना तलाक के दूसरे शादी नहीं कर सकते, जबकि मुस्लिमों को तीन शादी करने की इजाजत है. समान नागरिक संहिता आने के बाद सभी पर एक ही कानून होगा, चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या मजहब का ही क्यों न हो.
- समान नागरिक संहिता क़ानून में राज्य (राष्ट्र) को विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने और प्रतिपालन या मेंटेंस जैसे मसलों में सभी धर्म के लोगों को एक देश के नागरिक की तरह बिना किसी भेदभाव किए बर्ताव करने की व्यवस्था देता है. समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक कानून लागू होगा.
- इस तरह का कानून अभी तक देश में पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका है. गोवा एक मात्र ऐसा राज्य है, जहाँ यह क़ानून लागू है. वहां 1961 से ही पुर्तगाल सिविल कोड 1867 लागू है.
क्यों जरूरी है देश में समान नागरिक संहिता/ यूनिफार्म सिविल कोड? | Advantages/ Necessity of Uniform civil code (UCC) in Hindi
- दरअसल, दुनिया के किसी भी देश में जाति और धर्म के आधार पर अलग-अलग कानून नहीं है. परन्तु भारत में अलग-अलग पंथों के मैरिज एक्ट हैं. इस वजह से विवाह, जनसंख्या समेत कई तरह का सामाजिक ताना-बाना भी बिगडा हुआ है. इसीलिए देश के कानून में एक ऐसे यूनिफॉर्म तरीके की जरूरत है जो सभी धर्म, जाति, वर्ग और संप्रदाय को एक ही सिस्टम में लेकर आए. इसके साथ ही जब तक देश के संविधान में यह सुविधा या सुधार नहीं होगा, भारत के पंथ निरपेक्ष होने का अर्थ भी स्पष्ट तौर पर नजर नहीं आएगा.
- जल्द न्याय की संभावना: इसके साथ ही अलग-अलग धर्मों के अलग कानून व्यवस्था के कारण न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है. समान नागरिक संहिता से इस परेशानी से निजात मिलेगी और और अदालतों में वर्षों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द होंगे.
- महिलाओं की स्थिति सुधरेगी: Uniform civil code लागू होने से महिलाओं की स्थिति सुधरेगी. कुछ धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित हैं. इतना ही नहीं, महिलाओं का अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में भी एक समान नियम लागू होंगे.
- कानूनों का सरलीकरण : समान संहिता विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेना और उत्तराधिकार समेत विभिन्न मुद्दों से संबंधित जटिल कानूनों को सरल बनाएगी. परिणामस्वरूप समान नागरिक कानून सभी नागरिकों पर लागू होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म में विश्वास रखते हों. वर्तमान में हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के तहत करते हैं.
- लैंगिक न्याय: यदि समान नागरिक संहिता को लागू किया जाता है, तो वर्तमान में मौजूद सभी व्यक्तिगत कानून समाप्त हो जाएंगे, जिससे उन कानूनों में मौजूद लैंगिक पक्षपात की समस्या से भी निपटा जा सकेगा.
- समान नागरिक संहिता की अवधारणा है कि इससे सभी के लिए कानून में एक समानता से राष्ट्रीय एकता मजबूत होगी. देश में हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से देश की राजनीति में भी सुधार की उम्मीद है.
- समाज के संवेदनशील वर्ग को संरक्षण: समान नागरिक संहिता का उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित संवेदनशील वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है, जबकि एकरूपता से देश में राष्ट्रवादी भावना को भी बल मिलेगा.
- धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बल: भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द सन्निहित है, तथा एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य को धार्मिक प्रथाओं के आधार पर विभेदित नियमों के बजाय सभी नागरिकों के लिये एक समान कानून बनाना चाहिए.
क्या समान नागरिक संहिता से धार्मिक अधिकार छीन सकता है? | Can the Uniform Civil Code take away religious rights?
क्यों हो रहा है समान नागरिक संहिता क़ानून का विरोध? | Why is there opposition to the Uniform Civil Code Act?
- राज्य में निवास करने वाले लोगों को एक समान कानूनी अधिकार मिलने की स्थिति में तो लोगों को खुश होना चाहिए, फिर विरोध क्यों हो रहा है?
- इस सवाल का जवाब विशेषज्ञ देते हैं कि धर्म का मामला बताकर कई मामलों में लोग कानूनी प्रावधानों से बच जाते हैं.
- समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले कहते हैं कि इससे सभी धर्मों पर हिंदू कानूनों को लागू कर दिया जाएगा. समान नागरिक संहिता से धार्मिक स्वतंत्रता खतरे में आ सकती है.
- विरोध करने वाले ये भी कहते हैं कि इससे अनुच्छेद 25 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन होगा. अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है. परन्तु यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता की अवधारणा के विरुद्ध है.
- समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालो का कहना है कि इससे समानता नहीं आएगी, बल्कि इसे सब पर थोप दिया जाएगा.
- यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने के बाद एक से अधिक शादियां करना गैरकानूनी हो जाएगा. यूनिफॉर्म सिविल कोड से महिलाओं को पुरुषों के समान ही पिता की संपत्ति पर अधिकार मिल पाएंगे.
समान नागरिक संहिता कानून/ यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) इतिहास | Uniform Civil Code (UCC) history in Hindi
प्रक्रिया की शुरुआत 1882 के हैस्टिंग्स योजना से हुई और अंत शरिअत कानून के लागू होने से हुआ. ऐतिहासिक रूप से UCC का विचार 19वीं शताब्दी और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में यूरोपीय देशों में तैयार किए गए समान कोड से प्रभावित है. 1804 के फ्रांसीसी कोड ने उस समय प्रचलित सभी प्रकार के प्रथागत या वैधानिक कानूनों को खत्म कर दिया था, और इसे समान नागरिक संहिता से बदल दिया. बड़े स्तर पर यह पश्चिम देशो के बाद एक बड़ी औपनिवेशिक परियोजना के हिस्से के रूप में राष्ट्र को 'सभ्य बनाने' का एक प्रयास था.
हालांकि, 1857 में भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ने ब्रिटेन को एक सख़्त संदेश दिया कि वो भारतीय समाज के ताने बाने को नहीं छेड़े और शादियां, तलाक, मेनटेनेंस, गोद लेने और और उत्तराधिकार जैसे मामलों से संबंधित कोड में कोई बदलाव लाने की कोशिश नहीं करे.
देश में 18 जुलाई 1872 में ईसाई विवाह अधिनियम लागू किया गया था. यह पर्सनल लॉ कोचीन, मणिपुर, जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू किया गया. पारसियों में जूरी सिस्टम के तहत तलाक का फैसला पारसी मैरेज एंड डाइवोर्स एक्ट 1936 लागू है.
भारत का संविधान लिखते समय समान नागरिक संहिता कानून (UCC) पर बहुत चर्चा हुई. चर्च के केंद्र में था कि यूसीसी को संविधान में शामिल किया जाए या नहीं. यह 23 नवंबर 1948 का दिन था. लेकिन अंतत: इस पर कोई नतीजा सामने नहीं आ सका.
इसके अलावा एक स्पेशल मैरेज ऐक्ट, 1954 भी है, जो नागरिकों को विशेष धार्मिक पर्सनल लॉ से अलग सिविल विवाह करने की अनुमति देता है. भारत के गोवा राज्य में एक मात्र ऐसा राज्य है, जहाँ समान नागरिक क़ानून लागू है. वहां वर्ष 1961 से ही पुर्तगाल सिविल कोड 1867 लागू है.
1993 में महिलाओं के खिलाफ होने वाले भेदभाव को दूर करने के लिए बने कानून में औपनिवेशिक काल के कानूनों में संशोधन किया गया. इस कानून के कारण धर्मनिरपेक्ष और मुसलमानों के बीच खाई और गहरी हो गई, और कुछ मुस्लिम समुदाय के लोगो ने बदलाव का विरोध किया.
इस बात को आज 73 साल गुजर गए. इसे लेकर कुछ नहीं हो सका. आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार है तो देश के तकरीबन हर शहर में चाय के ठेलों से लेकर कॉफी हाउस तक यह चर्चा रहती है कि सरकार UCC लागू करेगी, क्योंकि 'एक देश, एक कानून' का विचार आज आमतौर पर हर आदमी के जेहन में है. नागरिकों को उम्मीद इसलिए भी है कि मोदी सरकार अपने अतीत में किए गए सख्त फैसलों के लिए जानी जाती है.
भारत में अभी समान नागरिक संहिता (UCC) की जगह क्या व्यवस्था है?
- भारत ऐसा धर्मनिरपेक्ष देश है, जहां नागरिकों से जुड़े कई मामलों के लिए के लिए अलग-अलग कानूनों का सहारा लिया जाता है. जैसे की - हिंदू विवाह कानून, हिंदू उत्तराधिकार कानून, भारतीय क्रिश्चियन विवाह कानून, पारसी विवाह, तलाक कानून आदि.
- हिंदुओं के लिए बनाए गए कोड के दायरे में सिखों, बौद्ध और जैन धर्म के अनुयायी आते है.
- ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड उनके धार्मिक शरिया कानून पर आधारित है, जिसमें एकतरफा तलाक और बहुविवाह जैसी प्रथाएं शामिल हैं.
- वहीं, देश में 18 जुलाई 1872 में ईसाई विवाह अधिनियम लागू किया गया था. यह पर्सनल लॉ कोचीन, मणिपुर, जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू है. इस अधिनियम के तहत विवाह और तलाक को लेकर विशेष सुविधाएं प्रदान की गई हैं.
- वहीं, पारसियों में जूरी सिस्टम के तहत तलाक का फैसला देने का रिवाज रहा है. इसके लिए पारसी मैरेज एंड डाइवोर्स एक्ट 1936 लागू है.
- इसके अलावा एक स्पेशल मैरेज ऐक्ट, 1954 भी है, जो नागरिकों को विशेष धार्मिक पर्सनल लॉ से अलग सिविल विवाह करने की अनुमति देता है.
- भारत में सिर्फ गोवा देश का ऐसा राज्य है, जहां कॉमन फैमिली लॉ लागू है. यानी यह देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां समान नागरिक संहिता/ यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है.
आर्टिकल 44 क्या है ? | What is Article 44 in Hindi?
समान नागरिक संहिता (यूनिफार्म सिविल कोड) पर राजनितिक पार्टी | Political Parties on Uniform Civil Code (UCC) in Hindi
समान नागरिक संहिता (यूनिफार्म सिविल कोड) एक ऐसा मुद्दा है, जो हमेशा से भाजपा के एजेंडे में रहा है. वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में पहली बार बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता (UCC) का मुद्दा शामिल किया था. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में भी बीजेपी ने समान नागरिक संहिता को शामिल किया था. सरकार का मानना है कि जब तक समान नागरिक संहिता को अपनाया नहीं जाता, तब तक लैंगिक समानता नहीं आ सकती.
वर्ष 2014 में आई नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने तीन तलाक और धरा 370 का खात्मा किया. इसी को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी, जो लैंगिक समानता सुनिश्चित करने के लिए एक सराहनीय कदम कहा जा सकता है. चूंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. ऐसे में कानून और धर्म का आपस में कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए. सभी लोगों के साथ धर्म से परे जाकर समान व्यवहार लागू होना जरूरी है.
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता कानून/ यूनिफॉर्म सिविल कोड | Uttarakhand Uniform Civil Code Committee (UCC)
देश में यूनिफार्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) लागू करने की मांग के बीच उत्तराखंड सरकार ने इस ओर कदम बढ़ाया है. दरअसल चुनाव के समय धामी ने समान नागरिक संहिता के लिए कमेटी बनाने का किया था दावा. अतः दूसरी बार उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनते ही पुष्कर सिंह धामी अपना वादा पूरा करते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लेकर एक कमेटी बनाई है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बताया कि कैबिनेट ने राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर कमेटी गठन को मंजूरी प्रदान कर दी है. इस कमेटी की अनुशंसा के आधार पर प्रदेश में समान नागरिक संहिता को लागू किया जा सकता है. अगर ऐसा होता है तो गोवा के बाद उत्तराखंड ऐसा करने वाला दूसरा राज्य बन गया है.
दुनिया के इन देशों में लागू है समान नागरिक संहिता | Uniform civil code in different countries
भारत में समान इसे लेकर बड़ी बहस जारी रही है, वहीं दूसरी ओर विश्व के कई आधुनिक देशों में ऐसे कानून पहले से ही लागू हैं. समान नागरिक संहिता से संचालित धर्मनिरपेक्ष देशों की संख्या बहुत अधिक है. इनमे अमेरिका, आयरलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की , इंडोनेशिया, सूडान, इजिप्ट जैसे कई देशों में समान नागरिक संहिता (Uniform civil code) लागू किया जा चुका है.
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