शूरवीर महाराणा प्रताप की अनसुने गाथा

जानिये महाराणा प्रताप की अनसुने किस्से, महाराणा प्रताप की अदम्य साहसिक कथा, जानिये मेवाड़ के महाराजा महाराणा प्रताप के बारे में... 


महाराणा प्रताप सिंह का जीवन परिचय 


महाराणा प्रताप का पूरा नाम

महाराणा प्रताप सिंह सिसोदियाम 


महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि

जन्म 9 मई, 1540 ई. 

जन्म स्थान कुंभलगढ़ दुर्ग, मेवाड़ 

( वर्तमान में कुम्भलगढ़ दुर्ग, राजसमंद जिला, राजस्थान ) 


महाराणा प्रताप की मृत्यु

19 जनवरी 1597 ई. (उम्र 56)

चावण्ड, मेवाड़

( वर्तमान में चावंड, उदयपुर जिला, राजस्थान ) 


महाराणा प्रताप का शासन काल

1568 - 1597 ई.

अवधि 29 वर्ष

राज्य सीमा मेवाड़ 


पिता : महाराणा उदयसिंह

माता : महाराणी जयवन्ताबाई 

पत्नी : महारानी अजबदे पंवार सहित ११ पत्नियाँ 

पुत्र/ पुत्री : अमरसिंह, भगवानदास, नत्था, पुरा, जसवंत सिंह, माल, गज, क्लिंगु, रायभाना, कल्याणदास, कल्ला, सनवालदास, दुर्जन सिंह, साशा, गोपाल, चंदा और शिखा, हत्थी और राम सिंह


धर्म : सनातन हिंदू धर्म

राजघराना : राजपूताना

राजधानी : उदयपुर 


महाराणा प्रताप की अनसुने गाथा
महाराणा प्रताप की अनसुने गाथा


शूरवीर महाराणा प्रताप

महाराणा प्रताप का पूरा जीवन संघर्षों और विरोधों से भरा था लेकिन फिर भी उन्होंने कभी अपनी स्वतंत्रता से समझौता नहीं किया और महान योद्धा कहलाए. महान योद्धा महाराणा प्रताप की वीरता को कभी भुलाया नहीं जा सकता है. सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा महराणा प्रताप ने आखिरी सांस तक मेवाड़ की रक्षा की. अकबर ने 30 साल तक उनको बंदी बनाने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली. पराक्रमी महाराणा प्रताप ने राजस्थान में राजपूतों की शान को एक ऐसी ऊंचाई दी थी, जिसकी मिसाल पूरी दुनिया में शायद ही कही देखने को मिलती है. 


शूरवीर महाराणा प्रताप की अनसुने गाथा, जानिये मेवाड़ के महाराजा महाराणा प्रताप से जुड़े कुछ अनसुने किस्से

  • महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था. 
  • महाराणा प्रताप के 24 भाई, 20 बहनें थी. वे एक तरह से 20 मांओं के प्रतापी पुत्र थे. 
  • महाराणा प्रताप का कद 7 फुट 5 इंच का था. महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलो, उनकी दो तलवारें जिनका वजन 208 किलोग्राम और कवच लगभग 72 किलोग्राम का था. कहा जाता है कि उनकी तलवार के एक ही वार से घोड़े के दो टुकड़े हो जाया करते थे. 
  • राजनैतिक कारणों के वजह से महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 शादियां की थीं. महाराणा प्रताप के 17 बेटे और 5 बेटियां थीं. महारानी अजाब्दे से पैदा हुए अमर सिंह उनके उत्तराधिकारी बने.
  • महाराणा प्रताप को अपने पिता की गद्दी हासिल करने में अपने सौतेली माता रानी धीरबाई के विरोध का सामना करना पड़ा. वे चाहती थीं कि गद्दी उनके बेटे कुंवर जगमाल को मिले लेकिन राज्य के मंत्री और दरबारी राणा प्रताप के पक्ष में थे. इसके बाद जगमाल ने गुस्से में मेवाड़ छोड़ दिया. वो अजमेर आकर अकबर से संधि कर ली, जिसके फलस्वरूप अकबर ने उन्हें जहाजपुर की जागीर उपहार स्वरूप दे दी. 
  • महाराणा प्रताप ने जिंदगी में कभी किसी गुलामी स्वीकार नहीं की. जबकि मेवाड़ को जीतने के लिए अकबर ने भी सभी प्रयास किए. उन्होंने कभी मुगलों के किसी भी तरह के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया और मेवाड़ से कई गुना ताकतवर मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष करते रहे. 
  • कहा जाता है की अकबर ने महाराणा प्रताप के पास 6 प्रस्ताव भेजे, जिससे युद्ध को शांतिपूर्ण तरीके से खत्म किया जा सके, लेकिन महाराणा ने अकबर की अधीनता में मेवाड़ का शासन स्वीकार नहीं किया. इसके बाद अकबर ने मानसिंह और असफ खान को एक विशाल सेना के साथ महाराणा प्रताप से युद्ध के लिए भेजा, जो महाराणा की सेना से कई गुना ज्यादा थी.
  • 18 जून, 1576 ई. के दिन हल्दीघाटी युद्ध में करीब 20,000 राजपूतों को साथ लेकर महाराणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के 80,000 से अधिक की सेना का सामना किया. यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें 17,000 लोग मारे गए थे.
  • एक दुर्घटना के चलते किले के पानी का सोर्स गन्दा हो गया था, जिसके कारण कुछ दिन के लिए महाराणा प्रताप को किला छोड़ना पड़ा और फिर अकबर की सेना का वहां कब्ज़ा हो गया. पर अकबर की सेना ज्यादा दिन वहां टिक न सकी और फिर से कुम्भलगढ़ पर महाराणा प्रताप का अधिकार हो गया.  
  • महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय घोड़ा, जिसका नाम 'चेतक' था. महाराणा प्रताप की तरह ही उनका घोड़ा चेतक भी काफी बहादुर था. हल्दीघाटी युद्ध में अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई. 
  • युद्ध में एक बार चेतक ने अपना पैर हाथी के सिर पर रख दिया और हाथी से उतरते समय चेतक का एक पैर हाथी की सूंड में बंधी तलवार से कट गया. पैर कटे होने के बावजूद महाराणा को सुरक्षित स्थान पर लाने के लिए चेतक बिना रुके दौड़ा. रास्ते में 100 मीटर के दरिया को भी एक छलांग में पार कर लिया. अपने घोड़े चेतक की मौत और खुद घायल होने के बावजूद महाराणा प्रताप मैदान से बच निकलने में सफल रहे. आज भी चित्तौड़ की हल्दी घाटी में चेतक की समाधि बनी हुई है.  
  • कहा जाता है की जब महाराणा प्रताप युद्ध के बाद जंगल-जंगल भटक रहे थे. एक दिन पांच बार भोजन पकाया गया और हर बार भोजन को छोड़कर भागना पड़ा. एक बार प्रताप की पत्नी और उनकी पुत्रवधू ने घास के बीजों को पीसकर कुछ रोटियां बनाईं. उनमें से आधी रोटियां बच्चों को दे दी गईं और बची हुई आधी रोटियां दूसरे दिन के लिए रख दी गईं. इसी समय प्रताप को अपनी लड़की की चीख सुनाई दी. एक जंगली बिल्ली लड़की के हाथ से उसकी रोटी छीनकर भाग गई और भूख से व्याकुल लड़की के आंसू टपक आये. यह देखकर राणा का दिल बैठ गया. मायरा की गुफा में महाराणा प्रताप ने कई दिनों तक घास की रोटियां खाकर वक्त गुजारा था. 
  • जब महाराणा प्रताप युद्ध के बाद जंगल-जंगल भटक रहे थे. अकबर ने एक जासूस को महाराणा प्रताप की खोज खबर लेने को भेजा. गुप्तचर ने आकर बताया कि महाराणा अपने परिवार और सेवकों के साथ बैठकर जो खाना खा रहे थे उसमें जंगली फल, पत्तियाँ और जड़ें थीं. जासूस ने बताया न कोई दुखी था, न उदास. ये सुनकर अकबर का हृदय भी पसीज गया और महाराणा के लिए उसके ह्रदय में सम्मान पैदा हो गया. अकबर के विश्वासपात्र सरदार अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना ने भी अकबर के मुख से प्रताप की प्रशंसा सुनी थी. उसने अपनी भाषा में लिखा, “इस संसार में सभी नाशवान हैं. महाराणा ने धन और भूमि को छोड़ दिया, पर उसने कभी अपना सिर नहीं झुकाया. हिंदुस्तान के राजाओं में वही एकमात्र ऐसा राजा है, जिसने अपनी जाति के गौरव को बनाए रखा है.” 
  • पृथ्वीराज राठौड़, अकबर के दरबारी कवि होते हुए भी महाराणा प्रताप के महान प्रशंसक थे. 
  • महाराणा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी में पराजित होने के बाद स्वयं अकबर ने जून से दिसम्बर 1576 तक तीन बार विशाल सेना के साथ महाराणा पर आक्रमण किए, परंतु महाराणा को खोज नहीं पाए, बल्कि महाराणा के जाल में फँसकर पानी भोजन के अभाव में सेना का विनाश करवा बैठे. थक हारकर अकबर बांसवाड़ा होकर मालवा चला गया. पूरे सात माह मेवाड़ में रहने के बाद भी हाथ मलता अरब चला गया. 
  • शाहबाज खान के नेतृत्व में महाराणा के विरुद्ध तीन बार सेना भेजी गई परन्तु असफल रहा. उसके बाद अब्दुल रहीम खान-खाना के नेतृत्व में महाराणा के विरुद्ध सेना भिजवाई गई और वह भी हारकर लौट गया. 9 वर्ष तक निरन्तर अकबर पूरी शक्ति से महाराणा के विरुद्ध आक्रमण करता रहा. नुकसान उठाता रहा अन्त में थक हार कर उसने मेवाड़ की और देखना ही छोड़ दिया. क्योंकि उसे अपने उत्तर-पश्चिम वाले क्षेत्र पर भी नजर रखना था, और अगले 12 सालों तक वो वहीं रहा. 
  • इन सभी घटवानो के बाद पुनः महाराणा प्रताप ने पश्चिमी मेवाड़ पर अपना कब्जा कर लिया, जिसमें कुंभलगढ़, उदयपुर और गोकुण्डा आदि शामिल थे, और उन्होंने चवण को अपनी नई राजधानी बनाई. 
  • आजतक महाराणा प्रताप की मौत का कोई पुख्ता सुबूत नही मिल पाया है, लेकिन कहा गया है कि चवण में 56 की उम्र में शिकार करते समय एक दुर्घटना होने से उनकी मौत हो गयी.


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