जानिये शिवाजी महाराज की अनसुने किस्से, छत्रपति शिवाजी महाराज की अदम्य साहसिक कथा, जानिये छत्रपति शिवाजी महाराज के पराक्रम के बारे में...
छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन परिचय
शिवाजी महाराज का पूरा नाम :
शिवाजी राजे भोंसले
शिवाजी महाराज की पुण्यतिथि :
19 फरवरी 1630
शिवनेरी दुर्ग
शिवाजी महाराज की मृत्यु :
3 अप्रैल 1680
रायगढ़
शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक :
6 जून 1674
शिवाजी महाराज का शासन काल :
1674 - 1680 ई.
पिता : शाहजी भोंसले
माता : जीजाबाई जाधव
भाई : सम्भाजी, एकोजी राजे
पत्नी : सईबाई निम्बालकर, सखुबाई राणूबाई ( अम्बिकाबाई ), सोयराबाई मोहिते, पुतळाबाई पालकर, गुणवन्ताबाई इंगले, सगुणाबाई शिर्के, काशीबाई जाधव, लक्ष्मीबाई विचारे, सकवारबाई गायकवाड़
पुत्र/ पुत्री : सम्भाजी, राजाराम, राणुबाई आदि.
धर्म : सनातन हिंदू धर्म
राजघराना : भोंसले
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छत्रपति शिवाजी महाराज के पराक्रम के शौर्य गाथा |
छत्रपति शिवाजी महाराज
भारतीय इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षर में छत्रपति शिवाजी महाराज की गौरव गाथा दर्ज है. वे एक पराक्रमी योद्धा थे. उन्होंने अपने शौर्य, पराक्रम और कुशल युद्धनीति के चलते मुगल साम्राज्य के छक्के छुड़ा दिए थे. वे बचपन से ही निडर और साहसी थे. शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था. उनके पिता का नाम शाहजी भोसले और माता का नाम जीजाबाई था. 6 जून, 1674 को छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था. इसी दिन शिवाजी ने महाराष्ट्र में हिंदू राज्य की स्थापना की थी, जिसके बाद ही उनको 'छत्रपति' की उपाधि मिली. महान मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज साहस और शौर्य की जीती-जागती मिसाल थे. युद्ध कौशल में उनका कोई सानी नहीं था, वे संख्या में कम होने के बावजूद अपनी गति और चातुर्य के बल पर बड़ी-बड़ी सेनाओं को धूल चटा देते थे. महाराज एक तरफ जहां वीर योद्धा थे वहीं दूसरी ओर वे बेहद दयालु शासक भी थे. जब तक क्षत्रपति महाराज जीवित रहें, तब तक मराठों का भगवा ध्वज हमेशा आकाश में लहराता रहा.
मराठा शक्ति को बढाने वाले व कभी हार न मानने वाले महान योद्धा और रणनीतिकार छत्रपति शिवाजी महाराज को उनके अदम्य साहस, कूटनीति, बुद्धिमता, कुशल शासक और महान योद्धा के रूप में पूरा भारत जानता है. हिंदू हृदय सम्राट व भारत के पराक्रमी मराठा शासक क्षत्रपति शिवाजी महाराज से देश का बच्चा बच्चा वाकिफ है. पूरे देश में लोग उनके सम्मान में महाराज के नाम से पहले क्षत्रपति शब्द का प्रयोग करते हैं. शिवाजी का नाम लेते ही आंखों के सामने एक वीर शासक, आज्ञाकारी पुत्र और नेक मराठा योद्धा की तस्वीर घूम जाती है. इस वीर की कथाओं में इतना असर है कि आज भी जब भी कोई उनका नाम लेता है वह गर्व और ताकत का अनुभव करता है.
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छत्रपति शिवाजी महाराज के पराक्रम के शौर्य गाथा |
छत्रपति शिवाजी महाराज की अनसुने साहसिक गाथा, जानिये छत्रपति शिवाजी महाराज के पराक्रम के बारे में...
- शिवाजी महाराज महान देशभक्त, राष्ट्र निर्माता कुशल प्रशासक और दृढनिश्चयी और बहुत बुद्धिमान थे.
- कई लोगो को लगता हैं कि शिवाजी का नाम भगवान् शिव के नाम से लिया गया है, लेकिन दरअसल यह नाम एक अन्य क्षेत्रीय देवता शिवई के नाम से लिया गया है.
- बचपन में ही शिवाजी महाराज ने युद्ध कौशल और राजनीति की शिक्षा अपनी माता जीजाबाई से ग्रहण कर की थी. इनकी माता ने इनके अन्दर बचपन से राजनीति एवं युद्ध की शिक्षा को बढ़ावा दिया.
- जब शिवाजी महज 15 साल के थे तभी उन्होंने बीजापुर के सेनापति को लालच देकर तोरणा का किला अपने कब्जे में ले लिया था.
- शिवाजी का विवाह 14 मई 1640 में सइबाई निम्बालकर के साथ लाल महल, पूना में हुआ था.
- शिवाजी महाराज के साहसी चरित्र और नैतिक बल पर उस समय के महान संत तुकाराम, समर्थ गुरुरामदास तथा उनकी माता जिजाबाई का अत्याधिक प्रभाव था.
- शिवाजी महाराज एक महान योद्धा थे, शिवाजी महाराज उन चुनिंदा शासकों में आते हैं जिनके पास पेशेवर सेना थी. वो अपने सैनिकों के साथ जमकर युद्धाभ्यास किया करते थे. उन्होंने सशक्त नौसेना भी तैयार कर रखी थी. भारतीय नौसेना का उन्हें जनक कहा जाता है.
- शिवाजी के ह्रदय में आम लोगों के लिए प्रेम और सम्मान था. वे कभी भी घरों या धार्मिक स्थलों पर लूट-पाट नहीं होने देते थे.
- छत्रपति शिवाजी राजे भोसले (1630-1680) ने जून, 1674 में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी. उन्होंने कई वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया, और उन्हें घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया.
- शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के 12 दिन बाद उनकी माता का देहांत हो गया.
- शिवाजी महाराज ने फारसी के स्थान पर मराठी और संस्कृत भाषा को राजकाज की भाषा बनाया था. उनके पास 8 मंत्रियों की परिषद थी, जिसे अष्टप्रधान कहा जाता था.
- शिवाजी महाराज की गनिमी कावा नामक कुट नीति, जिसमें शत्रु पर अचानक आक्रमण करके उसे हराया जाता है, को आदरसहित याद किया जाता है. उन्होंने ही गुरिल्ला के युद्ध प्रयोग का भी प्रचलन शुरू किया.
- कहा जाता है कि शिवाजी महाराज ने बीजापुर को जीतने में औरंगजेब की मदद की थी, लेकिन इस लड़ाई की एक पूर्व शर्त थी कि बीजापुर के गांव और किले मराठा साम्राज्य के तहत रहेंगे. लेकिन इस बीच मार्च 1657 में इनके बीच विवाद शुरू हो गया और शिवाजी महाराज और औरंगजेब के बीच कई लड़ाईयां हुई जिसका नतीजा कुछ नहीं निकला, लेकिन मराठा सेना ने शिवाजी के नेतृत्व में मुगलों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया.
- छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने शासनकाल में मराठवाड़ा के लगभग 360 किले जीते.
- एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया. तीन सप्ताह की बीमारी के बाद शिवाजी की मृत्यु अप्रैल 1680 में हुई.
- शिवाजी की मृत्यु के बाद उनके बड़े पुत्र सम्भाजी उत्तराधिकारी बने और मराठो की आजादी को बरकरार रखा.
- बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रीयता की भावना के विकास के लिए शिवाजी जन्मोत्सव की शुरुआत की.
- उनकी खासियत थी की वह अपने राज्य के लिए बादमें लड़ते थे पहले भारत के लिए लड़ते थे. उनका लक्ष्य था नि: शुल्क राज्य की स्थापना करना और हमेशा से अपने सैनिकों को प्रेरित करना की वह भारत के लिए लड़े और विशेष रूप से किसी भी राजा के लिए नहीं.
- वह एक अच्छे सेनानायक के साथ एक अच्छे कूटनीतिज्ञ भी थे. कई जगहों पर उन्होंने सीधे युद्ध लड़ने की बजाय युद्ध से बच निकलने को प्राथमिकता दी थी. यही उनकी कूटनीति थी, जो हर बार बड़े से बड़े शत्रु को मात देने में उनका साथ देती रही.
- शिवाजी महाराज एक धर्मनिरपेक्ष शासक थे. शिवाजी एक समर्पित हिन्दू होने के साथ-साथ धार्मिक सहिष्णु भी थे. शिवाजी महाराज एक विशेष धर्म से जरूर ताल्लुक रखते थे, लेकिन कभी उन्होंने अपनी प्रजा पर इसे नहीं थोंपा. वे सभी धर्मों का सम्मान करते थे. वे धर्मांतरण के सख्त खिलाफ थे. उनके साम्राज्य में मुसलमानों को पूरी तरह से धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त थी. कई मस्जिदों के निर्माण के लिए शिवाजी ने अनुदान दिया. उनके मराठा साम्राज्य में हिन्दू पंडितों की तरह मुसलमान संतों और फकीरों को भी पूरा सम्मान प्राप्त था. उनकी सेना में कई मुस्लिम योद्धा बड़े ओहदों पर आसीन थे. इब्राहिम खान और दौलत खान को उनकी नौसेना में खास पद दिए गए थे.
- शिवाजी महाराज महिला सम्मान के कट्टर समर्थक थे. शिवाजी महाराज के महिलाओं का काफी सम्मान करते थे. शिवाजी ने महिलाओं के प्रति किसी तरह की हिंसा या उत्पीड़न का पुरजोर विरोध किया. उनके आदेश तो यहां तक थे कि युद्ध में बंदी किसी भी महिला के साथ बुरा बर्ताव नहीं किया जाएगा. बल्कि उन महिलाओं को इज्जत के साथ वापस उनके घर भेजा जाएगा. अगर उनका कोई सैनिक महिला अधिकारों का उल्लंघन करता पाया जाता था तो उसकी कड़ी सजा मिलती थी.
- शिवाजी ने शस्त्रों का प्रयोग करने की शिक्षा और युद्ध लड़ने की शिक्षा अपने दादाजी कोंदेव से प्राप्त की थी. शिवाजी को माउंटेन रैट भी कहकर पुकारा जाता था, क्योंकि वह अपने क्षेत्र को बहुत अच्छी तरह से जानते थे और कहीं से कहीं निकल कर अचानक ही हमला कर देते थे और गायब हो जाते थे. शिवाजी महाराज गुरिल्ला युद्ध का जनक माना जाता है. वह छिपकर दुश्मन पर हमला करते थे और उनको काफी नुकसान पहुंचाकर निकल जाते थे. गुरिल्ला युद्ध मराठों की रणनीतिक सफलता का एक अन्य अहम कारण था. इसमें वे छोटी टुकड़ी में छिपकर अचानक दुश्मनों पर आक्रमण करते और उसी तेजी से जंगलों और पहाड़ों में छिप जाते. शिवाजी महाराज गोरखा युद्द का जनक भी कहते हैं.
- शिवाजी महाराज की पानहला के किले से निकलना उनके तेज तर्रार और शातिर दिमाग को दर्शाता है. एक बार शिवाजी महाराज को सिद्दी जौहर की सेना ने घेर लिया था. उन्होंने वहां से बच निकलने के लिए एक योजना बनाई. उन्होंने दो पालकी का बंदोबस्त किया. एक पालकी में शिवाजी के जैसा दिखने वाला शिवा नाह्वी था. उसकी पालकी किले के सामने से निकली. दुश्मन ने उसे ही शिवाजी समझकर उसका पीछा करना शुरू कर दिया. उधर दूसरे रास्ते से अपने 600 लोगों के साथ शिवाजी निकल गए.
- जब बाद में औरंगजेब अपने पिता शाहजहां को कैद करके मुगल सम्राट बना, तब तक शिवाजी ने पूरे दक्षिण में अपने पांव पसार लिए थे. उसने शिवाजी पर नियंत्रण रखने के उद्देश्य से अपने मामा शाइस्ता खां को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया. शाइस्ता खां ने अपनी 1,50,000 सेना के दम पर सूपन और चाकन के दुर्ग पर अधिकार करते हुए मावल में खूब लूटपाट की. शिवाजी को जब मावल में लूटपाट की बात पता चली तो उन्होंने बदला लेने की सोची और अपने 350 सैनिकों के साथ उन्होंने शाइस्ता खां पर हमला बोल दिया. इस हमले में शाइस्ता खां बचकर निकलने में कामयाब रहा, लेकिन इस युद्ध में शाइस्ता खां को अपनी चार अंगुलियों से हाथ धोना पड़ा. बाद में औरंगजेब ने शहजादा मुअज्जम को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया.
- औरंगजेब ने बाद में शिवाजी से संधि करने के लिए उन्हें आगरा बुलवाया, लेकिन वहां उचित सम्मान नहीं मिलने से नाराज शिवाजी ने भरे दरबार में अपना रोष दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया. इससे नाराज और उनपर 5000 सैनिकों का पहरा लगा दिया, लेकिन अपने साहस और बुद्धि के दम पर वो सैनिकों को चकमा देकर वहां से भागने में सफल रहे. दरअसल औरंगजेब की योजना शिवाजी को जान से मारने या कहीं और भेजने की थी लेकिन शिवाजी उससे काफी होशियार निकले, और शिवाजी महाराज वहां से मिठाई की टोकरियों में निकल गए.
- साल 1659 में आदिलशाह ने एक अनुभवी और दिग्गज सेनापति अफजल खान को शिवाजी को बंदी बनाने के लिए भेजा. वो दोनों प्रतापगढ़ किले की तलहटी पर एक झोपड़ी में मिले. दोनों के बीच यह समझौता हुआ था कि दोनों केवल एक तलवार लेकर आएंगे. शिवाजी को पता था कि अफजल खान उन पर हमला करने के इरादे से आया है. शिवाजी भी पूरी तैयारी के साथ गए थे. अफजल खां ने जैसे ही उन पर हमले के लिए कटार निकाली, शिवाजी ने अपना कवच आगे कर दिया. अफजल खां कुछ और समझ पाता, इससे पहले ही शिवाजी महाराज ने हमला कर दिया और उसका काम तमाम कर दिया.