Narsingh Jayanti 2021 : इस दिन है नरसिंह जयंती? जानिए पूजा विधि, व्रत कथा, शुभ मुहूर्त और इसका महत्व

नरसिंह जयंती 2021 : नरसिंह जयंती, पूजा विधि, व्रत कथा, शुभ मुहूर्त और इसका महत्व

नरसिंह जयंती वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है. हिंदू धर्म में इस दिन का बड़ा महत्व है. इस साल नरसिंह जयंती 25 मई 2021, दिन मंगलवार को मनाई जाएगी. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान नरसिंह भगवान विष्णु के चौथे अवतार माने जाते हैं. अहंकारी राजा हिरण्यकश्यप को मारने के लिए इस दिन भगवान विष्णु नरसिंह अवतार प्रकट हुए थे. इनका आधा रूप सिंह का और आधा मनुष्य का है. इस रूप में भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी. वैसे तो देश के हर कोने में भगवान नरसिंह की पूजा होती है, लेकिन खासतौर पर दक्षिण भारत में भगवान नरसिंह को वैष्‍णव संप्रदाय के लोग संकट के समय रक्षा करने वाले देवता के रूप में पूजते हैं. 

नरसिंह जयंती 2021 की शुभकामनाये


नरसिंह जयंती 2021 : इस दिन भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की होती है पूजा, ये है शुभ मुहूर्त  

नरसिंह जयंती वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है. हिंदू धर्म में इस दिन का बड़ा महत्व है. इस साल नरसिंह जयंती 25 मई 2021 दिन मंगलवार को मनाई जाएगी. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान नरसिंह भगवान विष्णु के चौथे अवतार माने जाते हैं. नरसिंह जयंती के दिन ही भगवान विष्णु ने आधा नर और आधा सिंह का अवतार लिया था जिसे नरसिंह अवतार के रूप में जाना जाता है. वैसे तो देश के हर कोने में भगवान नरसिंह की पूजा होती है लेकिन खासतौर पर दक्षिण भारत में भगवान नरसिंह को वैष्‍णव संप्रदाय के लोग संकट के समय रक्षा करने वाले देवता के रूप में पूजते हैं.

इस पर्व को पूरे देश में मनाया जाता है. खासकर दक्षिण भारत में वैष्णव संप्रदाय के मानने वाले इस पर्व को बहुत श्रद्धा भाव से मनाते हैं. दक्षिण भारत में वैष्णव संप्रदाय के लोगों द्वारा एक देवता के रूप में पूजे जाते हैं जो सदैव अपने भक्तों की रक्षा के लिए प्रकट होते हैं. भारत में सिर्फ 5 जगहों पर भगवान नृसिंह का मंदिर है. ये जगह हैं, मथुरा ( यूपी), मायापुर ( पश्चिम बंगाल), बीकानेर (राजस्थान), हाटपिप्लिया, बनमनखी (बिहार).


नरसिंह जयंती कब है 2021 में

नरसिंह जयंती वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है. भगवान नरसिंह की दिव्य उपस्थिति का जश्न मनाने के लिए इस वर्ष मंगलवार, 25 मई, 2021 को श्री नरसिंह जयंती उत्सव मनाएंगे.


नरसिंह जयंती शुभ मुहूर्त 


वैशाख शुक्ल पक्ष चतुर्दशी आरंभ- 25 मई 2021 को अंधेरे सुबह 12 बजकर 30 मिनट से

वैशाख शुक्ल पक्ष चतुर्दशी समाप्त-25 मई 2021 को रात्रि 08 बजकर 35 मिनट पर

 

ब्रह्म मुहूर्त- 04 बजकर 10 मिनट से 04 बजकर 57 मिनट तक

अभिजीत काल- सुबह 11 बजकर 57 मिनट से दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक

अमृत काल- रात 08 बजकर 27 मिनट से 09 बजकर 51 मिनट तक


ऐसे करें पूजा ( पूजा विधि )

नरसिंह जयंती के दिन व्रत एवं भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा की जाती है. प्रातःकाल उठकर सभी कामों से निवृत्त हो जाएं. सबसे पहले घर की साफ-सफाई करके पूरे घर में गंगा जल या गौमूत्र का छिड़काव करें. ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. 

अपने घर के पूजा स्थान में एक चौकी पर लाल श्वेत वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान नृसिंह और मां लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें. भगवान नरसिंह के मूर्ति के सामने दीपक जलाएं. षोडशोपचार पूजन करें. भगवान नृसिंह की पूजा में फल, पुष्प, पंचमेवा, कुमकुम केसर, नारियल, अक्षत व पीतांबर गंगाजल, काला तिल और हवन सामग्री का प्रयोग करें. इसके बाद अपनी मनोकामना का ध्यान करके भगवान नरसिंह के मंत्र ऊं नरसिंहाय वरप्रदाय नम: मंत्र का जाप करें. जाप करते समय कुश का आसन बिछा लें और रूद्राक्ष की माला से जाप करें. भगवान नरसिंह के मंत्रों का जाप मध्य रात्रि में भी करना सबसे शुभ माना जाता है. दिन भर व्रत रखें. व्रत के दिन फलाहार करें. 

कोशिश करें कि रात में गायन, वादन, पुराण श्रवण या हरि संकीर्तन से जागरण करें. दूसरे दिन फिर पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन करवाएं. किसी गरीब व्यक्ति को अन्न-वस्त्र का दान करके अपने व्रत का समापन करें. अपनी सामर्थ्य के अनुसार भू, गौ, तिल, स्वर्ण तथा वस्त्रादि का दान करें.


पूजन स्थल पर बैठकर निम्न मंत्र का जप करें- 

नृसिंह देवदेवेश तव जन्मदिने शुभे.

उपवासं करिष्यामि सर्वभोगविवर्जित: .. 


‘नैवेद्यं शर्करां चापि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम्.

ददामि ते रमाकांत सर्वपापक्षयं कुरु'..


नरसिंह मंत्र ऊं उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्.

नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् ..


भगवान नृसिंह के बीज मंत्र-

ॐ श्री लक्ष्मीनृसिंहाय नम: 


नरसिंह जयंती महत्व 

माना जाता है कि नरसिंह भगवान हर बड़े संकट से बचाते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं. नृसिंह भगवान अपने भक्तों की हर संकट और भय से रक्षा करते हैं. इनकी विधिवत पूजा अर्चना करने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है. जिन लोगों के जीवन में आर्थिक संकट बना हुआ है, शत्रु परेशान कर रहे हैं या फिर कोई रोग लगातार पीड़ा पहुंचा रहा है तो ऐसे में नरसिंह जयंती पर भगवान नरसिंह की पूजा अच्छे परिणाम देने वाली मानी जाती है. 


भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की अद्भुत कथा 

नरसिंह अवतार भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक है. नृसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य व आधा सिंह का शरीर धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था. 

प्राचीन काल में कश्यप नामक ऋषि हुए थे, उनकी पत्नी का नाम दिति था. उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम 'हरिण्याक्ष' तथा दूसरे का नाम 'हिरण्यकशिपु' था. हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वराह रूप धरकर मार दिया था. अपने भाई कि मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया. सहस्त्रों वर्षों तक उसने कठोर तप किया. उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे अजेय होने का वरदान दिया. उसे किसी भी इंसान, देवता, या जानवर या किसी अन्य संस्था द्वारा नहीं मारा जा सकता है. वह न तो दिन में और न ही रात में किसी भी प्रकार के हथियारों से मारा जा सकता था.

वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया. लोकपालों को मारकर भगा दिया और स्वत: सम्पूर्ण लोकों का अधिपति हो गया. देवता निरूपाय हो गए थे. वह असुर हिरण्यकशिपु को किसी प्रकार से पराजित नहीं कर सकते थे. हिरण्यकशिपु का शासन बहुत कठोर था. देव-दानव सभी उसके चरणों की वंदना में रत रहते थे. भगवान की पूजा करने वालों को वह कठोर दंड देता था, और वह उन सभी से अपनी पूजा करवाता था. कहीं ओर कोई सहारा न पाकर वे भगवान की प्रार्थना करने लगे. देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान नारायण ने हिरण्यकशिपु के वध का आश्वासन दिया.

अहंकार से युक्त हिरण्यकशिपु प्रजा पर अत्याचार करने लगा. इसी दौरान हिरण्यकशिपु कि पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम 'प्रह्लाद' रखा गया. एक राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी प्रह्लाद में राक्षसों जैसे कोई भी दुर्गुण मौजूद नहीं थे, तथा वह भगवान नारायण का परम भक्त था. वह अपने पिता हिरण्यकशिपु के अत्याचारों का विरोध करता था. समय के साथ दैत्यराज का अत्याचार दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा था. यहां तक कि वह अपने ही पुत्र प्रहलाद को भगवान का नाम लेने के कारण तरह-तरह का कष्ट देने लगा. प्रहलाद बचपन से ही खेल-कूद छोड़कर भगवान के ध्यान में तन्मय हो जाया करता था. वह भगवान का परम भक्त था. वह समय-समय पर असुर-बालकों को धर्म का उपदेश भी देता रहता था. असुर-बालकों को धर्म उपदेश की बात सुनकर हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित हुआ. उसने प्रहलाद को दरबार में बुलाया. प्रहलाद बड़ी नम्रता से दैत्यराज के सामने खड़ा हो गया. उसे देखकर दैत्यराज ने डांटते हुए कहा- ‘मूर्ख! तू बड़ा उद्दंड हो गया है. तूने किसके बल पर मेरी आज्ञा के विरुद्ध काम किया है?’ इस पर प्रहलाद ने कहा- ‘पिताजी! ब्रह्मा से लेकर तिनके तक सब छोटे-बड़े, चर-अचर जीवों को भगवान ने ही अपने वश में कर रखा है. वह परमेश्वर ही अपनी शक्तियों द्वारा इस विश्व की रचना, रक्षा और संहार करते हैं. आप अपना यह भाव छोड़ अपने मनको सबके प्रति उदार बनाइए.’ 

प्रहलाद की बात को सुनकर हिरण्यकशिपु का शरीर क्रोध के मारे थर-थर कांपने लगा. उसने प्रहलाद से कहा- ‘रे मंदबुद्धि! यदि तेरा भगवान हर जगह है तो बता इस खंभे में क्यों नहीं दिखता?’ यह कहकर क्रोध से तमतमाया हुआ वह स्वयं तलवार लेकर सिंहासन से कूद पड़ा. उसने बड़े जोर से उस खंभे को एक घूंसा मारा. उसी समय उस खंभे के भीतर से नरसिंह भगवान प्रकट हुए. उनका आधा शरीर सिंह का और आधा मनुष्य के रूप में था. क्षणमात्र में ही नरसिंह भगवान ने हिरण्यकशिपु को अपने जांघों पर लेते हुए उसके सीने को अपने नाखूनों से फाड़ दिया और उसकी जीवन-लीला समाप्त कर अपने प्रिय भक्त प्रहलाद की रक्षा की. नरसिंह ने प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा, वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा. जिस दिन भगवान नरसिंह रूप में खंभे से अवतरीत हुए थे, उस दिन वैशाख महीने की चतुर्दशी तिथि थी.


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