गौतम बुद्ध का जीवन परिचय -
आज हम एक महान आत्मा के बारे मे बात करेंगे जिनका जन्म एक महान कार्य के लिए हुआ था. आज हम गौतम बुद्ध के बारे मे बात करेंगे. गौतम बुद्ध के कारण ही बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ. आज हम गौतम बुद्ध का जीवन परिचय करेंगे. आज बौद्ध धर्म का पालन भारत, नेपाल, भूटान, चीन, जापान इत्यादि देशो मे किया जाता है.गौतम बुद्ध का जन्म लुंबिनी गांव मे 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंश शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था और उनका मृत्यु 483 ईसा पूर्व हुआ था.
शुरूआती जीवन में इनका नाम सिध्दार्थ था. गौतम बुद्ध के माता का नाम महामाया था, वह कोलीय वंश से थी, जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ. बुद्ध का पालन महारानी की छोटी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया.
सिद्धार्थ ने अपने गुरु विश्वामित्र से वेद और उपनिषद् का ज्ञान प्राप्त किया. सिद्धार्थ राजकाज और युद्ध-विद्या मे कुशलता प्राप्त किया साथ ही कुश्ती, घुड़दौड़, तीर-कमान तथा रथ हाँकने मे भी महारथ हासिल किया.
सोलह साल की उम्र में सिद्धार्थ का यशोधरा नाम के कन्या के साथ विवाह हुआ. कुछ समय बाद उन्होंने राहुल नाम के पुत्र को जन्म दिया. किन्तु कुछ समय पश्चात् उनका मन वैराग्य में चला गया औरबु द्ध ने अपने एक मात्र पहले नवजात शिशु राहुल और पत्नी यशोधरा को छोड़कर, संसार को जन्म, मृत्यु जैसे दुखों से मुक्ति के मार्ग एवं सत्य दिव्य ज्ञान की खोज में रात्रि में राजपाठ का मोह त्यागकर वन की ओर चले गए.
राज्य का मोह छोड़ने के बाद सिद्धार्थ तपस्या के लिए चल पड़े. वह राजगृह पहुँचे वहाँ पहुंच के उन्होंने भिक्षा माँगी. सिद्धार्थ घूमते-घूमते आलार कालाम और उद्दक रामपुत्र के पास पहुँचे. उनसे योग-साधना सीखी, समाधि लगाना सीखा पर उससे भी उन्हें संतोष नहीं हुआ. वह उरुवेला पहुँचे और वहाँ पर तरह-तरह से तपस्या करने लगे.
सिद्धार्थ ने पहले तो केवल तिल-चावल खाकरत शुरू की, बाद में कोई भी आहार लेना बंद कर दिया। शरीर सूखकर काँटा हो गया. छः साल बीत गए तपस्या करते हुए. सिद्धार्थ की तपस्या सफल नहीं हुई. एक दिन कुछ स्त्रियाँ किसी नगर से लौटती हुई वहाँ से निकलीं, जहाँ सिद्धार्थ तपस्या कर रहा थे. उनका एक गीत सिद्धार्थ के कान में पड़ा- ‘वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ दो, ढीला छोड़ देने से उनका सुरीला स्वर नहीं निकलेगा. पर तारों को इतना कसो भी मत कि वे टूट जाएँ.’ बात सिद्धार्थ को जँच गई. वह मान गये कि नियमित आहार-विहार से ही योग सिद्ध होता है. किसी भी प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग ही ठीक होता है ओर इसके लिए कठोर तपस्या करनी पड़ती है.
वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए.
वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ गौतम से भगवान बुद्ध बन गए.
बुद्ध 80 वर्ष की उम्र तक अपने धर्म का लोकभाषा पाली में प्रचार करते रहे. उनके सीधे सरल धर्म की लोकप्रियता तेजी से बढ़ने लगी. चार सप्ताह तक बोधिवृक्ष के नीचे रहकर धर्म के स्वरूप का चिंतन करने के बाद बुद्ध धर्म का उपदेश करने निकल पड़े. आषाढ़ की पूर्णिमा को वे काशी के पास सारनाथ पहुँचे. वहीं पर उन्होंने सर्वप्रथम धर्मोपदेश दिया और प्रथम पाँच मित्रों को अपना अनुयायी बनाया और फिर उन्हें धर्म प्रचार करने के लिये भेज दिया. महाप्रजापती गौतमी (बुद्ध की विमाता) को सर्वप्रथम बौद्ध संघ मे प्रवेश मिला.
भगवान बुद्ध ने अपने उपदेश द्वारा उन्होंने दुःख, उसके कारण और निवारण के लिए अष्टांगिक मार्ग सुझाया. उन्होंने अहिंसा पर बल दिया है। उन्होंने यज्ञ और पशु-बलि की निंदा की।
गौतम बुद्ध के कुछ विचार -
- अच्छी चीजों के बारे में सोचें– हम वही बनते हैं जो हम सोचते हैं. इसलिए सकारात्मक बातें सोचें और खुश रहें.
- अपना रास्ता स्वयं बनाएं–हम अकेले पैदा होते हैं और अकेले मृत्यु को प्राप्त होते हैं, इसलिए हमारे अलावा कोई और हमारी किस्मत का फैसला नहीं कर सकता.